S.D. Human Development, Research & Training Center | श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय पर आधारित समत्व-वृत्ति युक्त व्यक्तित्व परीक्षण श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय पर आधारित समत्व-वृत्ति युक्त व्यक्तित्व परीक्षण | S.D. Human Development, Research & Training Center
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श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय पर आधारित समत्व-वृत्ति युक्त व्यक्तित्व परीक्षण

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1. सत्व,रज,तम इन तीनों गुणों से परे हूँ। (निस्त्रैगुण्यः)
2. द्वन्द्व से रहित हूँ। (निर्द्वन्द्वो)
3. सदा सत्त्व में स्थित हूँ। (नित्यसत्त्वस्थः)
4. योगक्षेम से रहित हूँ। (निर्योगक्षेमः)
5. फ़ल-इच्छा रहित कर्म करता हूँ। (मा फ़लेषु कदाचन)
6. अकर्म में आसक्ति नहीं है। (मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि)
7. योग में स्थित होकर कर्म करता हूँ। (योगस्थः कुरु कर्माणि)
8. सङ्ग को त्याग कर कर्म करता हूँ। (सङ्गम् त्यक्त्वा)
9. सिद्धि और असिद्धि में समान रहता हूँ। (सिद्धयसिद्धयोः समो)
10. सकाम कर्म निकृष्ट है। (ह्यवरं कर्म)
11. बुद्धियोग का आश्रय लेता हूँ। (बुद्धौ शरणम्)
12. फ़ल के हेतु बनने वाले अत्यन्त दीन होते हैं। (कृपणाः फ़लहेतवाः)
13. पुण्य और पाप दोनों को त्याग देता हूँ। (जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते)
14. समत्व योग कर्म-बन्धन से छूटने का उपाय है। (योगः कर्मसु कौशलम्)
15. कर्म-जन्य फ़ल को त्याग देता हूँ। (कर्मजं)
16. जन्म रूप बन्धन से मुक्त हो गया हूँ। (जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः)
17. मोह रूपी दलदल से मेरी बुद्धि पार को गई है। (मोहकलिलम् बुद्धिः)
18. वैराग्य को प्राप्त हो गया हूँ। (निर्वेदम्)
19. भांति-भांति के वचनों को सुनने से विचलित हो गया हूँ। (श्रुतिविप्रतिपन्ना)
20. स्थिर बुद्धि हो गया हूँ। (समाधावचला बुद्धि)