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An Undertaking of S.D.College (Lahore) Ambala Cantt

हमने इस ग्रन्थ में स्पष्ट दिखा दिया है कि गीताशास्त्र के अनुसार इस जगत में प्रत्येक मनुष्य का पहला कर्त्तव्य ये ही है कि वह ईश्वर के शुद्ध स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करके उसके द्वारा अपनी बुद्धि को जितना हो सके निर्मल और पवित्र कर ले। परन्तु यह गीता का मुख्या विषय नहीं है। युद्ध के आरम्भ में अर्जुन इस कर्त्तव्य मोह में फसा था कि युद्ध करना क्षत्रिय का धर्म भले ही है परन्तु विपरीत पक्ष में कुलक्षय आदि घोर पातक होने से युद्ध मोक्ष-प्राप्ति रूप आत्म कल्याण का नाश कर डालेगा। उस युद्ध को करना चाहिए अथवा नहीं। अतएवं हमारा यह अभिप्राय है कि उस मोह को दूर करने के लिए शुद्ध वेदांत शास्त्र के आधार पर कर्म – अकरम का और साथ ही मोक्ष के उपायों का भी पूर्ण विवेचन कर इस प्रकार निश्चय किया गया है कि एक तो कर्म कभी छूटते ही नहीं ऑन न ही उन्हें छोड़ना चाहिए। अतयं गीता में उस युक्ति का अर्ताथ ज्ञान मूलक और भक्ति प्रधान कर्मयोग का ही प्रतिपादन किया गया है।