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श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय पर आधारित स्थितप्रज्ञ का व्यक्तित्व परीक्षण

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1. दिखावे से युक्त वाणी कहता हूँ। (पुष्पितां वाचम्)
2. वेदवाक्यों में प्रीति रखता हूँ। (वेदवादरताः)
3. कामनास्वरुप हूँ। (कामात्मानः)
4. स्वर्ग ही परम प्राप्य वस्तु है। (स्वर्गपराः)
5. जन्म रूप कर्म फ़ल देने वाली वाणी हीबोलता हूँ। (जन्मकर्मफ़लप्रदाम्)
6. भोग-प्राप्ति के लिए अनेक क्रियाएँ करता हूँ। (क्रियाविशेषबहुलां)
7. भोग और ऐश्वर्य में आसक्त रहता हूँ। (भोगैश्वर्यप्रसक्तानाम्)
8. अपह्रत चित्त वाला हूँ। (अपह्रतचेतसाम्)
9. निश्चयात्मक बुद्धि वाला नहीं हूँ। (व्यवसायात्मिका बुद्धि)
10. आत्मवान् हूँ। (आत्मवान्)
11. मनोगत कामनाओं का पूर्ण रूप से त्याग करता हूं। (कामान् सर्वान्)
12. अपने आपमें संतुष्ट रहता हूं। (आत्मन्येवात्मना तुष्टः)
13. स्नेह रहित रहता हूं। (सर्वत्रानभिस्नेह)
14. न किसी से हर्ष करता हूं न द्वेष। (नाभिनन्दति न द्वेष्टि)
15. इन्द्रियों को उनके विषयों से हटा लेता हूं। (इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यः)
16. विषयों का चिन्तन करता रहता हूं। (ध्यायतो विषयान्)
17. विषयों में आसक्त रहता हूं। (संगस्तेषूपजायते)
18. प्रसन्न-चित्त रहता हूं। (प्रसन्नचेतसो)
19. मेरी बुद्धि मन के पीछे चलती है। (तदस्य हरति प्रज्ञां)
20. सबके सोते जागता हूं, जागते सोता हूं। (या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी)
21. स्पृहा रहित हूँ।(निस्पृहः)
22. ममता रहित हूँ। (निर्ममो)