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An Undertaking of S.D.College (Lahore) Ambala Cantt

परिचर्चा सार, 1 सितम्बर, 2018
(वेदव्यास संस्कृत की पुनः संरचना योजना के अधीन)

संस्कृत, संगीत, हिन्दी, पंजाबी,एस.डी.मा.वि.शो.प्र केन्द्र  एवम् मन्थन थिएटर एवम् फ़िल्म फ़ाँऊडेशन द्वारा संयुक्त रूप से कला एवम् नाट्य – दशा, दिशा और दर्शन, ART & THEATER – CONDITION, DIRECTION & VISION विषय पर आयोजित परिचर्चा में 30 कलाकारों निर्देशकों, आलोचकों विभिन्न अध्यापकों ने प्रतिभागिता की जिसमें प्रमुख  डा. रत्न सिंह ढिल्लों, श्री भारत सपोरी, श्री अंकुर मिश्रा, श्री संजीव भाटिया, श्री उमाशंकर, डा. उमा शर्मा, डा. विजय शर्मा, डा. गौरव शर्मा, डा. जय प्रकाश गुप्त, डॉ. जोगिन्द्र सिंह, श्री अनिल मित्तल, श्री बी.डी. थापर, प्रो. मीनाक्षी, डॉ. रितु तलवार (जालन्धर), श्री प्रिंस आर्य आदि तथा मन्थन ग्रुप के अभिनेता व अन्य कला प्रेमी व्यक्तियों ने प्रतिभागिता की।

संस्कृत विभाग ने परिचर्चा के आरम्भ में कला, साहित्य और रंगमंच के विषय का विश्लेषण करते हुये,वर्तमान में रंगमंच और कला के क्षेत्र से सम्बन्धित चुनौतियों और सम्भावनाओं का विशद वर्णन करते हुए कहा कि वर्तमान में शोषण, जाति, स्त्री, सत्ता, भ्रष्टाचार आदि समस्याओं सम्बन्धी नाटक लिखने का चलन दिखाई देता है जो कि मात्र संघर्ष के रूप में समाज को देखता है,परन्तु आज सुखद अनुभुति एवं प्रेम,सौहार्द और मनुष्य को संस्कारित तथा संवेदनशील बनाने वाले रंगमञ्च और लेखन का अभाव दिखाई देता है। क्या आदमी को, समाज को स्वस्थ नाटक या सुखद नाटक की तलाश नहीं करनी चाहिए? क्या यथार्थ के नाम पर केवल हिंसा, घुटन, असम्वेदनशीलता यही रह गया है। साथ ही कई उठाए गए प्रश्नों में महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह भी थे कि अभिनेता अपने उपर जब अन्य पात्र के चरित्र का आरोपण करता है तो किस प्रक्रिया से अपनी भावनाओं, बौद्धिकता और उद्वेग को नियन्त्रित करता है? नाटकों के अर्थव्यवस्था, स्थान, समय, समाज के प्रतिसम्वेदन आदि कई विषय चर्चा के लिए प्रस्तुत किए गए । दो अन्य प्रश्न संस्कृतज्ञों के लिए विशेष रूप से प्रस्तुत किए गए कि एक “बोरियत” के भाव की संस्कृत साहित्य में क्या व्यवस्था या आलोचना है और दूसरा यह कि संघर्ष को मूल मान कर लिखे जाने वाले नाटकों की श्रृंखला में संस्कृत-नाटकों की सम्वेदनशीलता कॊ संगत कैसे बनाया जाए? *डॉ. उमा शर्मा ने नाट्य परम्परा का शास्त्रीय अर्थ और इतिहास बताते हुये कहा कि भारत में नाट्यपरम्परा का जनक भरतमुनि को स्वीकार किया जाता है। नाटकों का विकास चाहे जिस प्रकार हुआ हो संस्कृत साहित्य में नाट्य ग्रंथ और तत्संबंधी अनेक शास्त्रीय ग्रंथ लिखे गए और साहित्य में नाटक लिखने की परिपाटी संस्कृत आदि से होती हिन्दी को भी प्राप्त हुई। तत्पश्चात् मन्थन ग्रुप के निदेशक, श्री उमाशंकर ने नाटक की विभिन्न विधाओं का वर्णन करते हुये, छात्रों व उपस्थित विद्वानों को नाटक एवं कला से जुडने के लिये प्ररित किया, उन्होनें कहा कि नाटक मानव मन की आवाज है,नाटक व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को दिशा दिखाने की शक्ति रखता है। नाटक एक विचार है, एक सोच है,जो रंगमंच से निकल कर मानव हृदय को झंकृत करती है। श्री भारत सपोरी (आम्बालस्थ काश्मीरी निर्देशक) ने काश्मीर से विस्थापन और  उनसे सम्बन्धित नाटकों में किए जा रहे प्रयोगों की जानकारी दी और बहुत सारे प्रश्न प्रतुत भी किए और उनके द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सूचना भी प्रदान की। डा. आर.एस. ढिल्लों ने एस. डी कालेज के नाटकों के लम्बे एवम् स्तरीय इतिहास का परिचय और अम्बाला के नाटककारों का भी परिचय दे कर अम्बाला में नाट्यमञ्चन की समस्याओं से अवगत कराया । विशेष रूप से उन्होंने दिवंगत श्री मिल्खी राम जी के कार्यों का स्मरण कराया जो वास्तव में प्रशंसनीय है।  *प्रो. रितु तल्वार (डी ए वी कालेज, जालन्धर) * ने पञ्जाब में संस्कृत नाटकॊं को ले कर किए गए कार्यों की समीक्षा प्रस्तुत की। कार्यक्रम में उपस्थित रङ्गकर्मियों ने परिचर्चा में कहा कि अम्बाला एक ऐतिहासिक नगर है, सरकार को चाहिये कि वह नाट्य परम्परा जैसी अद्भुत संवाद एवं दृश्य कला-शैली को जीवित तथा विकसित करने के लिये सभी नाट्य प्रेमियों का उत्साह वर्धन करे । और अम्बाला को एक कला व नाट्य भवन तथा विद्यालय प्रदान करे ताकि अम्बाला में गुमनाम जीवन जी रहे, सैकडों प्रतिभाशाली नाट्यकलाकार न केवल राष्ट्रमंच पर अपितु विश्व पटल पर अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ सके । परिचर्चा में नाट्य क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों जैसे- धन, समय, स्थान और स्त्री पात्रों का न मिलना, योग्य और प्रतिभाशाली कलाकारों का कला क्षेत्र से विमुख हो जाने के कारणों का विश्लेषण किया  गया तत्पश्चात सभी ने यह संकल्प किया कि शीघ्र ही कला और नाट्य से सम्बन्धित एक विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया जायेगा, जिसमें अभिनय-कला और रंगमंच से जुडे हुए कौशलों से समान्य-जन का परिचय करवाया जायेगा। इस सम्बन्ध में यह प्रस्ताव भी किया गया कि अम्बाला के सभी थियेटर ग्रुप मिल कर नाट्योत्सव का आयोजन करेंगे। कार्यक्रम के अन्त में सभी कला प्रेमियों ने सनातन धर्म कालेज के प्राचार्य डॉ. राजेन्द्र सिंह का धन्यवाद किया कि वह अम्बाला के साहित्य प्रेमियों और कलाकारों को अपना अनुपम सहयोग देने के लिये सदैव तत्पर रहते है। तथा सनातन धर्म कालेज में ऐसे उपयोगी और सार्थक विषयों पर परिचर्चा का आयोजन करवाने के लिये सदा जागरूक रहते हैं। इसके लिये उनका बहुत-बहुत साधुवाद।
सादर
आशुतोष आंगिरस